खोईंछा

खोईंछा________

आज शुक्रवार है,खुराफाती दिमाग में आना लाज़िम है।दस दिन पहले मेरी मां अपने नईहर गईं हुई थीं,हम फोन किए उनको तो बोली तुम्हारे मामा के घर आई हुई हूं, अभी निकलना है,तुमको घर चल के फोन करती हूं,हम पूछे कितने देर में निकलोगी,बोलीं कि बस अभी नानी तुम्हारी खोइंछा लेकर अा ही रही हैं, खोईंछा लेकर बस निकल जाना है।खोईंछा लेते और देते तो बचपन से देखते अा रहें हैं लेकिन उसका शाब्दिक और धार्मिक मतलब से कभी मतलब ही नहीं रहा,उस दिन व्यस्तता भी नहीं थी तो इसे जानने की उत्सुकता भी बढ़ी।उत्सुकता पुष्पम प्रिया के खोईंछा अभियान से भी था, अगर आपको भी इसके बारे में पता है तो बताइए।

लड़कपन में मां के खोईंछा का मतलब बस हमारे लिए उसमें के कुछ रुपयों से रहता था,कब मा उस रुपए को हमें दे और गांव के दया के दुकान में लॉटरी, बिस्किट,या कुछ भी खाने का सामान खरीद लें,या उस पैसे को जेब में रख कर भगत जी के आइसक्रीम की इंतजार रहती,या शाम में साईं के भूजे का,अगर कुछ ज्यादा होता तो अगले दिन स्कूल में साह जी समोसे से उस पैसे को बदला जाता था।खोईंछा में पड़े जो भी समान हो पैसे पर तो हमारा ही अधिकार रहता था,उन पैसों के वाहवाही में ,खुलते हुए आंचल के साथ आखों के संकीर्ण गलियों से मोतियों के उन प्रवाहों पर ध्यान ही नहीं जाता,जाता भी कैसे इतनी बुद्धि भी तो नहीं होती तब।लेकिन उस खोईंछा के साथ भावना के उस प्रचंड वेग का बहुत ही घनिष्ठ मित्रता है।

अमूमन जब बहू अपने मायके जाए या बेटी अपने ससुराल जाए घर का कोई बुजुर्ग या कोई औरत खोईंछा देती है।खोईंछा बांस से बने सिपुली से दोनों हाथो के द्वारा सामने वाले के आंचल में भरा जाता है।सीपूली से इस कारण की ये आने वाली संतानों में वृद्धि और उनकी वृद्धि परस्पर बना रहे। बेटी जब मायके से अपने ससुराल जाए तब के केस में माहौल बहुत ही भावनात्मक हो जाता है।खोईंछा वह भावनात्मक पुल है जो विदाई के समय आंखो से बरस रहे उस बारिश के साथ दो मनोभाव के बीच अटूट जुड़ाव को और मजबूती देता है।

खोईंछा में अक्षत,दुभ,हल्दी के गांठ,जीरा,द्रव्य जो को कुछ सिक्के के रूप में होते हैं या चांदी का मछली।अक्षत या जीरा में से एक कुछ दिया जाता है,अपनी श्रद्धा अनुसार द्रव्य में सिक्का या चांदी का मछली दिया जाता है।इन हर एक चीज के पीछे बहुत सुंदर धार्मिक और भावनात्मक आस्था होती है,भावना के इंटेंसिटी को पता करना बहुत ही कठिन काम है,वैसे भी आज तक कोई इंजिनियर पैदा नहीं हुआ कि किसी भी प्रकार के कोई भावना का इंटेसिटी को पता कर पाए या बन भी जाए तो ये भावनाएं उसके रेंज से बाहर ही रहेगा।इस खोईंछा के साथ जाने कितने वर्षों का मा का दुलार,पिताजी की हिम्मत,भाई – बहन के प्यार,गांव के उस एकतरफा प्यार का एक संगठित मिश्रण मायके से ससुराल जाता है।अक्षत अन्नपूर्णा का प्रतीक है और इस कारण भी दिया जाता है कि कभी किसी प्रकार का क्षति ना हो,हल्दी तो किसी बीमार में एंटीबॉडी का काम करता ही है ठीक वैसे ही ये हल्दी धार्मिक रूप से परिवार में परस्पर सुचालक का प्रतीक है।दूभ इसलिए दिया जाता है ताकि परिवार में सजीवता बनी रहे।द्रव्य तो लक्ष्मी का ही प्रतीक है।कुल मिलाकर ये है कि ये सारी चीजें माता लक्ष्मी और माता अन्नपूर्णा का प्रतीक है।

आंचल में खोईंछा लेने के बाद एक प्रक्रिया और भी है कि वापस अपने आंचल से चार – पांच दाना सिपूली में रखना होता है जो शायद यह दर्शाता है कि भले ही मेरी शादी कहीं और किसी के घर हुई हो लेकिन मायका आज भी मेरे साथ है।हम जब से घर से दूर रहे,साबुन घर से ही लेे गए ताकि सुबह – सुबह अगर प्रयोग करें तो घर से इतना दूर घर की ख़ुशबू सुबह से ही हमारे धमनियों में प्रवाहित होती रहे,ठीक वैसे ही खोईंछा किसी भी सुहागन को उसके अंदर उसके गांव,घर की खुशबू को अपने ने समेटे रहता है साथ ही साथ बहुत हिम्मत भी देता है।

खोईंछा देना या उसे लेकर जाना यह भी दर्शाता है कि देने वाले का घर और जहां जा रहा है वह घर दोनों मां लक्ष्मी और मां अन्नपूर्णा के आशीर्वाद से फलीभूत रहे।सीपुली से आंचल में गिर रहे खोईंछा के एक – एक चीज के साथ और आंखो से बरस रहे मोतियों के बीच अगर एक ग्राफ बनाया जाय तो पक्का ही स्ट्रेट लाइन खींचेगा।
ये संस्कृति आपको भारत में ही देखने को मिलेगा।और ये संस्कृति हमेशा जीवंत रहे।

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