जब एक औरत मां बनने के फेज
जब एक औरत मां बनने के फेज में रहती है तो उसके अंदर,आत्मा हो,शरीर हो,दिमाग हो,सब चीज में बहुत बड़ा बदलाव आता है।पेट में पल रहे बच्चे के आलावा बहुत सी चीज़ों को सहन करना पड़ता है,दबाव में रहना पड़ता है,दबाव खुद का रहता है कि पता नहीं क्या होगा,कैसे कर पाऊंगी चीज़ों को,दबाव घर वालो का रहता है,दबाव रिश्तेदारों का रहता है,दबाव मोहल्ला, साथ – समाज का रहता है कि सब चीजें ढंग से निपट जाए। इतने सब के बाद आे औरत अब औरत नहीं रहती,इतने बदलाव के बाद उसे मां नाम दिया जाता है।
ठीक वैसे ही एक अबोध बालक या बालिका इंटर पास करके इंजिनियरिंग में जाता है तो उसके अंदर बहुत सी चीज़ों का बदलाव होता है, शारीरिक,मानसिक,हुनर,बात करने के तरीके का भी।पढ़ाई के दबाव के अलावा,कॉलेज के तमाम चुतीयापे, प्लेसमेंट ना होने का डर,फीस के टाइम से जमा ना हो पाने का डर,परीक्षा में ढंग से पास होने की चिंता, गार्जियन के इनपुट को बढ़िया आउटपुट में बदलने का चिंता, रिश्तेदारों के ताने का डर इत्यादि।इन तमाम माहौल में रहने के बाद आे अबोध बालक अब बालक नहीं रह जाता,उसके अंदर बहुत बड़ा बदलाव आता है जिसे वह खुद ही समझता है और किसी अपने जमात के अलावा समझाने की क्षमता भी उसके अंदर नहीं पनप पाती।
शादी से पहले हर सास के उसके होने वाली बहू को,हर लड़के के उसकी होने वाली बीबी को शारीरिक दक्षता पास करनी पड़ती है,मतलब कि शादी के समय फिगर मेंटेन हो,शादी के पहले पेट का निकलना किसी को पसंद नहीं होता है,लेकिन वहीं गर्भावस्था के समय सबको उसके पेट का निकलना मतलब शारीरिक बदलाव बखूबी भाता है, बच्चे के बाद फिर से सभी चाहते हैं कि फिगर मेंटेंन हो जाए,सारे स्क्रैच मार्क्स मिट जाए। लेकिन फिर से ये ट्रांसफॉर्मेशन कहा से पॉसिबल हो पाता है।जो औरत इस दौर से गुजरती है उसके अलावा शायद ही कोई समझ पाता है।
ठीक वैसे ही इंजिनियरिंग से पहले उसअबोध को सभी चाहते हैं कि कच्चे बांस की तरह रहे,जैसे चाहे वैसे मोड़ दे,होता भी वैसे ही है। इंजिनियरिंग के दौरान हो रहे उस बालक या बालिका के अंदर के बदलाव को भी बहुत हद तक सराहा जाता है,तरह – तरह के उसके तारीफ में कसीदें काढे जाते हैं,लेकिन इंजिनियरिंग के बाद फिर से सबकी इच्छा होती है कि उस कच्चे बांस की तरह फिर लचकदार हो जाए,तो ये फिर से लचकदार हो जाना कतई संभव नहीं है।एक शख़्स को इंसान से इंजिनियर बनने में चार साल का समय लगता है,इस चार साल में वह व्यक्तित्व तमाम झोल – झपाटे के अंदर पलता और बढ़ता है।चार साल में इंसान से इंजिनियर बनना तो संभव है लेकिन पूरी जिंदगी क्यो ना लग जाए, फिर इंजिनियर से चार साल पहले के इंसान को बनना कभी संभव नहीं होता।एक इंजिनियर के अलावा कोई नहीं समझ सकता।