समुन्द्र के किनारे
समुन्द्र के किनारे बैठा था,
अकेले,शांतचित, एकांत को धारण कर,
लहर ने पूछा ऐसे अकेले में क्यों बैठे हो?
मै बोला अकेले कहां!!तुम भी तो हो,
लहर हसते हुए बोली हम कहां!!
कभी आती हूं कभी शांत रहती हूं,
फिर मैं बोला, दोनों में मैं खुद को तुम्हारे साथ पाता हूं,
लहर बोली अच्छा!! वो कैसे?
मैं बोला जब तुम आती हो तो बेबाकी से भींगो कर जाती हो,
जब शांत रहती हो तो तुम्हारी आने की सौंदर्यता मुझे खूब भाता है।
लहर बोली अच्छा!!ठीक है, पहले इधर तो आओ,
करीब जाने के बाद छपाक से भींगो कर,
चिढ़ाते हुए बोली खुद को भी बेबाक बनाओ – बेबाक!!
अभी उसके बातों को खुद से मिलाता तब तक दुबारा भींगो कर दूर जाते हुए चिल्ला कर बोली साहिल किनारे मखमल बन खुशियों को भी बिखेरते रहो।