हजरतगंज के चकाचौंध
चाहे कहीं से इंजिनियरिंग पढ़ लो,मैनेजमेंट पढ़ लो,दुनिया के सबसे बड़े एमएनसी में नौकरी कर लो,तुम्हारे चमक के आगे सब फीका है।सबकुछ। हर बार तुम्हारी खूबसूरती अपने तरफ खींच ही लेती है और ये आर्कषण नही है।देखने के बाद दिल का अंतिम तह भी तार – तार हो जाता है। एको त्वं, द्वितीयो नास्ति!!
लखनऊ का पेरिस है हजरतगंज,ग़ज़ब का चमक – धमक लेकिन कुछ ही दूर पर खुद में मौन को धारण कर हजरतगंज और चारबाग के बीच झूले में झूलता विधानसभा।जिसके सौंदर्यता के आगे सब फ़िका – सा लगता है। भले हजरतगंज में लोगो के बातों के अनकही गरमाहट के बीच उनकी चाय ठंडी पड़ जाए लेकिन विधानसभा के आगे ठेले पर बिक रहे चनाचुर की सौंधापन कभी कम नहीं होती है।
हजरतगंज की यात्रा एक बार बस पेरिस ही महसूस करा सकती है लेकिन विधानसभा के भवन के पास मात्र की यात्रा पूरे देश के सबसे बड़े सूबे की यात्रा करा सकती है। विधानसभा निहारने का आनंद सुबह – सुबह घास पर खाली पैर टहलने जैसा था। उत्कर्ष एक चिट्ठी के जबाव में लिखते हैं,
तुम चमक मॉल के शोरूम की,मै किसी दफ्तर का टेबल प्रीये। तुम हजरतगंज के चकाचौंध सी, मै विधानसभा का सौम्यता प्रीये। लखनऊ विधानसभा।